एक झूठ को छिपाने के
लिए सौ झूठ बोलने पड़ते हैं।
भारतीय एथलेटिक्स
महासंघ राष्ट्रीय रिकार्डधारी ओ पी जैशा को झूठा साबित करने पर अड़ा है। इस
प्रक्रिया में वह खुद को कितना उपहास का पात्र बना रहा है यह शायद उसको समझ में
नही आरहा है। इसीलिए उसने खुद एक प्रेस विज्ञप्ति जैशा को झूठा बताने के मकसद से
दी।जब मीडिया चैनलों ने महासंघ के पदाधिकारियों की मंशा पर सवाल उठाए तो 25,08,16 को
संघ ने रियो मैराथन में भाग लेने वाली दूसरी धाविका कविता राउत से यह बयान दिला
दिया कि,‘ उसे भारतीय अधिकारियों से कोई शिकायत नही है।’लेकिन उसने भी माना कि‘
मुझे इस दौरान काफी प्यास लगी क्योंकि रेस कड़ी
धूप में हुई थी।’ 26,8,16जैशा निजी कोच ने बयान दे दिया
कि जैशा ने खुद विशेष ड्रिंक लेने से इनकार कर दिया।लेकिन इस बयान ने आयोजकों की
लापरवाही ढ़कने के बजाय और उघाड़ दी। कोच ने साफ कहा कि बेजिंग विश्व चैंपियनसिप
के दौरान भी उसने विशेष ड्रिंक नही लिया था।सवाल है क्या कोच या अंय संबंधित
अधिकारियों ने कभी भारतीय खिलाड़ियों को बताया कि उनको विशेष ड्रिंक क्यों लेना
चाहिये।यदि वे ये विशेष ड्रिंक व रिफ्रेशमेंट लेती हैं तो उनका प्रदर्शन बेहतर
होगा। निकोलई के बयान से साफ हो गया कि सभी अंतराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में
खिलाड़ियों के साथ जाने वाले भारतीय अपने खिलाड़ियों की उस तरह से देखभाल नही करते
जैसा कि फुलेला गोपीचंद अपने शिष्यों की रियो में कर रहे थे।
सवाल
यह नहीं है कि जैशा ने विशेष ड्रिंक लेने से मना किया कि नहीं । सवाल यह है कि जब
नियमों के तहत एक सुविधा उपलब्ध थी, और अन्य देश अपने खिलाड़ियों को वह सुविधा
प्रदान कर रहे थे तो भारतीय खिलाड़यों को महासंघ के पदाधिकारियों ने क्यों नही दी।
जिस प्रकार खेल के हर मोड़ पर अंय देशों के महासंघों के पदाधिकारी अपने खिलाड़ियों
की देखभाल के लिए तैनात थे उसी प्रकार यदि भारतीय महासंघों के संबंधित अधिकारी भी इंगित
स्थानों पर रहते तो हमारे खिलाड़ियों का मनोबल बढ़ता। विशेष ड्रिंक लेने का
आवश्यकता है या नहीं यह तो दौड़ के ट्रेक
पर ही धावक महसूस कर सकते है। एक दिन पहने हां या ना कहने का कोई औचित्य नहीं है।
जो धावकों को प्रशिक्षण देते हैं वे धावकों से ज्यादा अच्छी तरह समझ सकते हैं कि
42 डिग्री की गर्मी में पूरे 42 किमी विशेष ड्रिंक के बगैर दोड़ना सही है या गलत।
यदि स्वास्थ्य के लिए यह हानिकारक नहीं होता तो इनको देने की व्यवस्था ही नहीं
होती। आखिर खिलाड़ियों को क्या मिलना चाहिये क्या नही विशेषज्ञ तय करते हैं
खिलाड़ी नही। निकोलई ने यह भी बताया कि
आयोजकों ने भी पर्याप्त पानी की व्यवस्था नहीं की थी। भारतीय खेल महासंघ के
पदाधिकारियों ने यह भी पता करने की आवश्यकता नहीं समझी कि आयोजकों ने क्या सादे पानी
के भी पर्याप्त इंतजाम किये हैं या नहीं। ऐसे में क्या खेल मंत्रालय ड्यूटी में
कोताही बरतने वाले इन पदाधिकारियों पर अनुशासनात्मत कार्यवाही करेगा या जैशा को
सच्चाई उजागर करने की सजा देगा।
परेशानी नही हुई।
वह यह भी समझ नही
पारहा है कि उसके इस प्रकार के व्यवहार से खिलाड़ियों के मन में उसके सदस्यों के
लिए कितनी इज्जत बची होगी