शनिवार, 27 अगस्त 2016

एक झूठ को छिपाने के लिए सौ झूठ बोलने पड़ते हैं।



एक झूठ को छिपाने के लिए सौ झूठ बोलने पड़ते हैं।

भारतीय एथलेटिक्स महासंघ राष्ट्रीय रिकार्डधारी ओ पी जैशा को झूठा साबित करने पर अड़ा है। इस प्रक्रिया में वह खुद को कितना उपहास का पात्र बना रहा है यह शायद उसको समझ में नही आरहा है। इसीलिए उसने खुद एक प्रेस विज्ञप्ति जैशा को झूठा बताने के मकसद से दी।जब मीडिया चैनलों ने महासंघ के पदाधिकारियों की मंशा पर सवाल उठाए तो 25,08,16 को संघ ने रियो मैराथन में भाग लेने वाली दूसरी धाविका कविता राउत से यह बयान दिला दिया कि,‘ उसे भारतीय अधिकारियों से कोई शिकायत नही है।’लेकिन उसने भी माना कि मुझे इस दौरान काफी प्यास लगी क्योंकि रेस कड़ी धूप में हुई थी। 26,8,16जैशा निजी कोच ने बयान दे दिया कि जैशा ने खुद विशेष ड्रिंक लेने से इनकार कर दिया।लेकिन इस बयान ने आयोजकों की लापरवाही ढ़कने के बजाय और उघाड़ दी। कोच ने साफ कहा कि बेजिंग विश्व चैंपियनसिप के दौरान भी उसने विशेष ड्रिंक नही लिया था।सवाल है क्या कोच या अंय संबंधित अधिकारियों ने कभी भारतीय खिलाड़ियों को बताया कि उनको विशेष ड्रिंक क्यों लेना चाहिये।यदि वे ये विशेष ड्रिंक व रिफ्रेशमेंट लेती हैं तो उनका प्रदर्शन बेहतर होगा। निकोलई के बयान से साफ हो गया कि सभी अंतराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में खिलाड़ियों के साथ जाने वाले भारतीय अपने खिलाड़ियों की उस तरह से देखभाल नही करते जैसा कि फुलेला गोपीचंद अपने शिष्यों की रियो में कर रहे थे।
     सवाल यह नहीं है कि जैशा ने विशेष ड्रिंक लेने से मना किया कि नहीं । सवाल यह है कि जब नियमों के तहत एक सुविधा उपलब्ध थी, और अन्य देश अपने खिलाड़ियों को वह सुविधा प्रदान कर रहे थे तो भारतीय खिलाड़यों को महासंघ के पदाधिकारियों ने क्यों नही दी। जिस प्रकार खेल के हर मोड़ पर अंय देशों के महासंघों के पदाधिकारी अपने खिलाड़ियों की देखभाल के लिए तैनात थे उसी प्रकार यदि भारतीय महासंघों के संबंधित अधिकारी भी इंगित स्थानों पर रहते तो हमारे खिलाड़ियों का मनोबल बढ़ता। विशेष ड्रिंक लेने का आवश्यकता है या नहीं  यह तो दौड़ के ट्रेक पर ही धावक महसूस कर सकते है। एक दिन पहने हां या ना कहने का कोई औचित्य नहीं है। जो धावकों को प्रशिक्षण देते हैं वे धावकों से ज्यादा अच्छी तरह समझ सकते हैं कि 42 डिग्री की गर्मी में पूरे 42 किमी विशेष ड्रिंक के बगैर दोड़ना सही है या गलत। यदि स्वास्थ्य के लिए यह हानिकारक नहीं होता तो इनको देने की व्यवस्था ही नहीं होती। आखिर खिलाड़ियों को क्या मिलना चाहिये क्या नही विशेषज्ञ तय करते हैं खिलाड़ी नही। निकोलई ने यह भी  बताया कि आयोजकों ने भी पर्याप्त पानी की व्यवस्था नहीं की थी। भारतीय खेल महासंघ के पदाधिकारियों ने यह भी पता करने की आवश्यकता नहीं समझी कि आयोजकों ने क्या सादे पानी के भी पर्याप्त इंतजाम किये हैं या नहीं। ऐसे में क्या खेल मंत्रालय ड्यूटी में कोताही बरतने वाले इन पदाधिकारियों पर अनुशासनात्मत कार्यवाही करेगा या जैशा को सच्चाई उजागर करने की सजा देगा।
परेशानी नही हुई।
वह यह भी समझ नही पारहा है कि उसके इस प्रकार के व्यवहार से खिलाड़ियों के मन में उसके सदस्यों के लिए कितनी इज्जत बची होगी

शनिवार, 7 मई 2016

तीन सहेलियां




एक लाल रंग की तितली थी। एक तितली पीले रंग की थी। और एक सफेद रंग की। तीनों अच्छी दोस्त थी।हर रोज तीनों सहेलियां पार्क में साथ साथ खेलती थी। एक दिन जब ये तीनों सहेलियां पार्क में खेल रही  थी अचानक झमाझम बारिस होने लगी। वर्षा के पानी से तीनों तितलियों के पंख भीगने लगे।ठंड से सिर से पांव तक वे कांपने लगी।ठंड से कांपते हुए वे तीनों तितलियां उद्यान में खिले लाल फूल की तरफ उड़ी।तीनों लाल फूल से बोली लाल फूल दीदी कृपया हमें अपनी पंखुड़ियों में छुपा दो ताकि हम इस बारिस में भीगने से बच जाएं। लाल फूल बोला लाल तितली बहन तुम आ जाओ। अन्य दो तितली यहां से तुरन्त रफूचक्कर हो जाओ। तीनों सहेलियों ने एक साथ ना में सिर हिलाया और कहा हम तीनों अच्छी सहेलियां हैं। हम एक साथ उद्यान में खेलने आती हैं एक साथ घर वापस जाती हैं। निराश होकर वे तीनों पीले फूल के पास उड़ कर गई। पीले फूल से बोली पीले फूल दीदी कृपया अपनी पंखुड़ियों के नीचे हमें शरण दे दो ताकि हम बारिस से भीगने से बच जाएं।पीले फूल ने कहा पीली  तितली तुम आओ और मेरी पंखुड़ियों में छिप जाओ।लाल व सफेद तितली तुम यहां से भाग जाओ। तीनों सहेलियों ने एक साथ ना में सिर हिलाया और कहा हम तीनों अच्छी सहेलियां हैं। हम एक साथ उद्यान में खेलने आती हैं एक साथ घर वापस जाती हैं। अंत में तीनों सहेलियां सफेद फूल के पास गई और सफेद फूल से बोली सफेद फूल दीदी दया करके हमें अपनी पंखुड़ियों के नीचे शरण दे दो ताकि हम बारिस में भीगने से बच जाएं। सफेद फूल ने कहा सफेद तितली तुम आ जाओ। लाल और पीली तितली तुम यहां से भाग जाओ। तीनों सहेलियों ने एक साथ ना में सिर हिलाया और कहा हम तीनों अच्छी सहेलियां हैं। हम एक साथ उद्यान में खेलने आती हैं एक साथ घर वापस जाती हैं। बादलों के पीछे छुप कर सूरज दादा यह सब देख रहे थे।उन्होने जल्दी से बादलों को भगाया और बारिस से थम जाने को कहा। इस प्रकार आकाश साफ होगया। धूप खिल गई। तीनों सहेलियां फूलों के झुरमुट में फिर से साथ साथ अठखेलियां करने लगी।

सोमवार, 2 मई 2016

सुअर का पिक्निक जाना

सुअर का पिक्निक जाना
सुबह सुहानी थी। सुअर सोकर उठा तो सुहावना मौसम देखकर खुश हो गया। सोचा क्यों न सखी के साथ पिकनिक जाया जाए। बस फिर क्या था सुअर जी खूब बन सवर कर गुनगुनाते हुए अपनी सखी के घर की ओर चल दिये। सखी को पिकनिक पर चलने के लिए राजी करना था। इसलिए उसके लिए एक फूलों का गुलदस्ता भी खरीद लिया। इस प्रकार हाथ में गुलदस्ता लिए सजे धजे सुअर को रास्ते में मस्त मस्त जाते देखकर मित्र सियार ने टोका और इस मस्ती का कारण जानना चाहा। सियार को जब पता चला कि सुअर अपनी सखी के साथ पिक्निक जा रहा है तो उसने झट से एक सुझाब दे डाला और कहा यदि सुअर सियार की सुंदर सी पूंछ उधार लेकर लगा ले तो सखी उसे देखते ही मंत्रमुग्ध हो जाएगी। सियार की सुंदर सी पूंछ लगाकर सुअर भी सियार की तरह चतुर चालाक लगेगा। सुअर को प्रस्ताव जच गया।खट से सियार की पूंछ लगा ली और खूब खुश हुआ। सुअर सियार की पूंछ लगा  हाथ में गुलदस्ता लिए थोड़ी ही दूर चला था कि एक और दोस्त शेर खान मिल गया। शेर खान को जब पता चला कि सुअर सखी को साथ पिक्निक मनाने जारहा है तो खूब खुश हुआ और सुझाव दिया कि सुअर अपनी मित्र पर रौब गाठने के लिए शेर खान के सिर के बाल लगा ले। इन वालों की वजह से  सुअर भी शेर खान की तरह ही निर्भीक व शक्तिशाली लगेगा। इसका सुअरी पर बड़ा प्रभाव पड़ेगा। सुअर ने फटाफट शेर के सिर के बाल लगा लिए और बहुत संतुष्ट हुआ। सियार की पूंछ ,शेर के बाल लगाकर सुअर कुछ दूर और चला ही था कि उसे एक और दोस्त जेबरा मिल गया।जेबरा ने भी पिक्निक जाने के लिए सखी को राजी करने की कहानी सुनी और सुझाया कि यदि सुअर जेबरा की सुन्दर सी धारियों को उधार लेकर लगा लें तो इतना खूबसूरत लगेगा कि उसकी सखी उस पर इतनी मंत्रमुग्ध हो जाएगी कि  सुअर को मना नही कर पाएगी।सुअर ने जेबरा का सुझाव भी मान लिया और उसकी सुंदर सी धारियां भी लगा ली।इतना सारा श्रंगार करने से सुअर आत्ममुग्ध होगया। उसको लगा कि वह इतना छैल छबीला कभी नही दिखता था।आखिर वह सुअरी के घर पहुंच ही गया। उत्तेजना व अति उत्साह में जोर जोर से सुअरी के घर के दरवाजे खटखटाने लगा।सुअरी ने घर के अन्दर से ही पूछा कौन है और क्यों आया है। सुअर ने साथ पिक्निक चलने का प्रस्ताव रखा तो सुअरी इस बहुरुपिये सुअर को देखकर डर गई। उसने लम्बी छलांग लगाई  और जोर से चिल्लाई बिलकुल नहीं। भारी भरकम राक्षस तुम कहां से आए हो। यहां से फटाफट चले जाओ नहीं तो मैं अपने दोस्त सुअर महाशय को बुला लाउंगी। वह तुम्हें ठीक कर दैंगे। सुअरी का गुस्सा देखकर सुअर के होश उड़ गए वह दुम दबाकर वहां से वापस भागा। रास्ते में जेबरा की सुन्दर धारिया उतार कर जेबरा को वापस की। सर के बाल उतार कर शेर खान को वापस किये। और पूंछ उतार कर सियार को वापस की। अब अपने असली रुप में जल्दी  जल्दी वह सुअरी के घर को चल दिया। घर पहुंच कर उसने सुअरी के घर की घंटी जोर से बजाई और सुअरी से पूछा कि वह उसके साथ पिक्निक जाना पसन्द करेगी। अरे आप सुअरी चिल्लाई। आपको देख कर मुझे बड़ी खुशी होरही है। मुझे आपके साथ पिक्निक जाने में बड़ा मजा आएगा। अभी कुछ समय पहले एक भद्दा जीव मेरे घर के अहाते में घुस आया था। उसे देख कर मुझे बहुत डर लगा। रास्ते में सुअरी ने उस भद्दे राक्षस के रंग रूप के बारे में अपने छैल छबीले दोस्त सुअर को बताया। सुअर  पूरे मनोयोग के साथ उसकी गाथा सुन रहा था और सोच रहा था कि वास्तव में आज पिक्निक जाने का अच्छा दिन है।

(ये कहानी चीनी तथा अंग्रेजी भाषा में  http://chinesereadingpractice.com/category/beginner/childrens-stories/ में उपलब्ध है। मुझे लगा कि हिंदी भाषी भी इसे पसंद करेंगे। इसीलिए हिंदी में अनुवाद करने की कोशिश की।)


बिलौटे ने मछली पकड़ी


बिलौटे ने मछली पकड़ी
छोटी बिल्ली बड़ी बिल्ली एक साथ नदी किनारे मछली मारने गई थी। जैसे ही उन्होंने नदी में अपने अपने जाल फैंके एक ड्रैगन मक्खी उड़ती हुई आई। बिल्ली के बच्चे ने जैसे ही ड्रैगन मक्खी को उड़ते हुए आते देखा तो झटसे अपने मछली पकड़ने वाले जाल को नीचे फैंका और ड्रैगन मक्खी को पकड़ने भागी।लेकिन ड्रैगन मक्खी फुर्र से उड़ गई। बिलौटा हाथ मलता वापस नदी किनारे मछली पकड़ने आगया। तभी उसने देखा कि बड़ी बिल्ली ने एक बड़ी मछली पकड़ ली है। इसी समय एक तितली उड़ती हुई आई।बिलौटे  ने जैसे ही तितली को देखा फटाफट मछली पकड़ने वाला डंडा जमीन पर फैककर तितली पकड़ने भागा। तितली भी फुर्र से उड़ गई। बिलौटा फिर खाली हाथ नदी किनारे मछली पकड़ने वापस आगया। इतनी देर में बड़ी बिल्ली ने फिर एक बड़ी मछली पकड़ ली थी। बिलौटे को बड़ा गुस्सा आया। वह बोला मैं क्यों एक छोटी मछली भी नहीं पकड़ पा रहा हूं। बड़ी बिल्ली ने बिलौटे को घूर कर देखा और कहा मछली पकड़नी है तो मन लगाकर मछली पकड़ो। इस प्रकार आधे अधूरे मन से कभी ड्रैगन मक्खी पकड़ने भागोगे और कभी तितली के पीछे भागोगे तो कैसे मछली पकड़ पाओगे। बिलौटे ने बड़ी बिल्ली की बात सुनी और मन लगाकर मछली पकड़ने लगा। तभी ड्रैगन मक्खी उड़ती हुई आई उसके पीछे पीछे तितली उड़ती हुई आई। लेकिन बिलैटे ने उनकी ओर आंख उठाकर भी नहीं देखा। वह मछली पकड़ने में तल्लीन था। थोड़ी सी देर में उसके जाल में भी एक बड़ी मछली फंस गई।


(ये कहानी चीनी तथा अंग्रेजी भाषा में  http://chinesereadingpractice.com/category/beginner/childrens-stories/ में उपलब्ध है। मुझे लगा कि हिंदी भाषी भी इसे पसंद करेंगे। इसीलिए हिंदी में अनुवाद करने की कोशिश की।)


नन्ही सी घास यिन यिन के चांदी जैसे बाल

नन्ही सी घास यिन यिन के चांदी जैसे बाल
नन्ही सी घास यिन यिन को चांदी जैसा चमकता सफेद रग बहुत पसंद था। वह चाहती थी कि उसके बालों का रग चांदी जैसा सफेद होजाय। इसलिए जब बसन्त ऋतु आई तो उसने बसन्त की देवी से अपने सिर के बालों को चांदी के रंग में रंगने की प्रार्थना की। बसन्त की देवी ने माफी मांगते हुए कहा यिन यिन मैं तुम्हारे सिर के बाल केवल हल्के हरे रंग में रंग सकती हूं। बसन्त की देवी का उत्तर सुन कर यिन यिन को बड़ी निराशा हुई।  बसन्त के बाद ग्रीष्म ऋतु आई। ग्रीष्म ऋतु की देवी से यिन यिन  ने फिर अपनी पुरानी मांग दोहराई। ग्रीष्म ऋतु की देवी ने भी यिन यिन की मांग मानने में अपनी असमर्थता जताई और कहा कि मैं तुम्हारे सिर के बाल केवल गहरे हरे रंग में ही रंग सकती हूं। यिन यिन को ना सुन कर फिर बड़ा आघात लगा।
  इसके बाद शरद ऋतु आई। यिन यिन ने शरद ऋतु की देवी से भी प्रार्थना दोहराई । शरद ऋतु की देवी ने भी माफी मांगते हुए कहा कि मैं तुम्हारे बाल सोने जैसे पीले रंग में रंग सकती हूं।ना सुनकर यिन यिन को बहुत पीड़ा हुई। अंत में जाड़े का मौसम आया। शिशिर ऋतु(जाड़े का मौसम )आते ही नन्ही सी यिन यिन ने जाड़े की देवी से कहा कि वह यिन यिन के सिर के बाल चादी जैसे सफेद कर दे। जाड़े की देवी ने उत्तर दिया कि वह य़िन यिन के सिर के बाल चांदी जैसे सफेद तो रंग देगी। लेकिन बाद में यिन यिन को अपने सफेद बाल देख कर पछतावा तो नही होगा। यिन यिन ने चहकते हुए कहा बिलकुल नहीं। चादी जैसे चमकते सिर के बाल पाकर मेरी खुशी का पारावार नही रहेगा। जाड़े की देवी ने यिन यिन के बाल चादी जैसे सफेद कर दिये। इस प्रकर यिन यिन के सिर के बाल चादी जैसे सफेद होगए। परन्तु य़कायक यिन  यिन के सिर के बाल झड़ने भी लग गए। अब यिन यिन को समझ आगयी कि यदि बालों को बार बार रंगा जायगा तो व टूटेंगे और झड़ेंगे ही।
(ये कहानी चीनी तथा अंग्रेजी भाषा में  http://chinesereadingpractice.com/category/beginner/childrens-stories/ में उपलब्ध है। मुझे लगा कि हिंदी भाषी भी इसे पसंद करेंगे। इसीलिए हिंदी में अनुवाद करने की कोशिश की।)


नन्हे भालू का लकड़ी का घर !!!

नन्हे भालू का लकड़ी का घर !!!

चीन की एक पहाड़ी गुफा में भालू का एक बड़ा परिवार रहता था। परिवार में दादा, दादी, अम्मा, बाबा के साथ साथ छोटे बच्चे भी रहते थे। इतने सारे प्राणियों के लिए गुफा छोटी पड़ती थी। इसलिए दादा भालू ने नन्हे पोते भालू को सुझाव दिया कि वह पास के जंगल से लकड़ी काट कर एक लकड़ी का घर बनाए।

नन्हा भालू बसन्त ऋतु के आगमन के साथ ही घर बनाने के लिए लकड़ी काटने पास के घने जंगल में घुसा। जंगल में गजब की हरियाली छाई थी। वहां के सारे पेड़ हरे हरे पत्तों से अपना श्रंगार किये थे। नन्हे भालू को यह हरियाली इतनी भाई कि इन सजे धजे सुंदर हरे हरे पेड़ो को को काट कर अपना घर बनाना उसे अच्छा नही लगा। और वह खाली हाथ गुफा लौट आया। बसन्त के बाद ग्रीष्म ऋतु आई। नन्हा भालू फिर जंगल में पेड़ काटने गया। लेकिन जंगल के सारे पेड़ रंग बिरंगी फूलों की चादर ओढ़े थे। सारा जंगल उन फूलों की खुशबू से महक रहा था। नन्हा भालू इस रंग में भंग नही करना चाहता था। रंग बिरंगी फूलों से लदे पेड़ों को काटना उसको अच्छा नहीं लगा। बसन्त ऋतु की भांति ही इस बार भी वह खाली हाथ वापस गुफा में आगया। फिर आई हेमन्त ऋतु।नन्हा भालू फिर पेड़ काटने जंगल गया। इस बार जंगल के सारे पेड़ फलों से लदे थे। नन्हे भालू को लगा कि फलों से लदे पेड़ो को नहीं काटना चाहिये। एक बार फिर वह अपना सा मुह लेकर अपनी गुफा में खाली हाथ लौट आया। हेमन्त के बाद शिशिर ऋतु आई।नन्हे भालू को लगा घर बनाने का यह सबसे उत्तम समय है।वह जंगल की ओर चल पड़ा। इस बार जंगल में किसम किसम की चिड़ियों की चहचआहट गूज रही थी। हर पेड़ की शाखाओं से उनके घोंसले लटक रहे थे। नन्हा भालू अपने एक घर के लिए इतनी चिड़ियों को कैसे बेघर कर सकता था। इसलिए बिना पेड़ काटे बह अपनी गुफा में वापस आगया। इस प्रकार साल दर साल गुजरते गए। नन्हे भालू को कोई भी ऐसा मौसम नहीं मिला जब किसी को हानि पहुचाए बिना वह पेड़ काटकर अपना घर बना सकता था। इसलिए वह खुशी खुशी अपनी पत्थर की गुफा में ही अपने बड़े परिवार के साथ रहने लगा। नन्हे भालू की इस जिओ और जीन दो की नीति का उस जंगल में रह रहे सभी जीव जन्तुओँ ने स्वागत किया । उन्होंने नन्हे भालू का आभार जताने के लिए उसे ताजे फूलों का एक गुलदस्ता भैंट किया ।

(ये कहानी चीनी तथा अंग्रेजी भाषा में  http://chinesereadingpractice.com/category/beginner/childrens-stories/ में उपलब्ध है। मुझे लगा कि हिंदी भाषी भी इसे पसंद करेंगे। इसीलिए हिंदी में अनुवाद करने की कोशिश की।)


बाओ कुंग का अनोखा न्याय

बाओ कुंग का अनोखा न्याय
 बाओ कुंग(999-1062)चीनी इतिहास के अग्रणी चमत्कारिक व्यक्तियों में  थे। वे एक नेकदिल,निष्पक्ष, होशियार तथा न्यायपूर्ण प्रशासक थे। इसी वजह से चीन के अंय महापुरुषों  की तरह उनके महान कार्यों के बारे में भी कई किंवदंतियां चीनी समाज में प्रचलित हुई। नीचे दी गई कहानी भी उनमें से एक है। 

बहुत साल पहले की बात है। एक छोटा बच्चा एक पहाड़ी गांव में रहता था। वह बहुत गरीब था। उसके पिता की मृत्यु होगई थी। मां बीमार रहती थी। परिवार की आजीविका चलाने का भार इस बच्चे के नाजुक कंधों पर था।इस कारण इसका जीवन बड़ा कष्यमय था। 
वह हर रोज पौ फटते ही उठ जाता। तेल में तले हुए डबल रोटी के लच्छे(टुकड़े या डंडिया) टोकरी में रख कर वह टोकरी को कंधे में लटका लेता। फिर तेज भागते हुए आवाज लगाता तली हुई डबल रोटी के स्टिक्स ले लो, तली हुई डबल रोटी के स्टिक्स ले लो, कुरकरी स्वादिष्ट डबल रोटी के स्टिक्स ले लो, दो पैसे की डबल रोटी के स्टिक्स ले लो । इस तरह फेरी लगाते हुए वह तली हुई डबल रोटी के लच्छे बेचता था। 
एक दिन उसकी सारी डबल रोटी जल्दी बिक गई।  वह सड़क के किनारे एक बड़े से पत्थर पर बैठ गया और सुस्ताने लगा। उसने टोकरी में रखे तांबे के सिक्कों को एक एक कर गिना। कुल एक सौ सिक्के थे। तेल में तली डबल रोटी की डंडिया बेचते समय उसके दोनों हाथों में तेल लग जाता था।इन तेल लगे हाथों से पैसे गिनने में तांबे सिक्कों में भी तेल लग गया था। तेल से चमकते इन सिक्कों को देख कर वह बहुत खुश हुआ। उसने सोचा आज मैंने 100 सिक्के कमाए हैं। इनमें से कुछ सिक्को से मैं मां के के लिए दवाई खरीद सकता हूं। 

यह सोचते सोचते उसने अपना सिर उस पत्थर पर टिका दिया। वह जल्दी ही गहरी नींद में सो गया। थोड़ी देर में वह जागा। उसने सोचा कि मुझे फटाफट मां को दवाई खरीद कर देनी चाहिये। वह उठ खड़ा हुआ । परन्तु यह क्या टोकरी में तो एक भी सिक्का नहीं था। यह देख कर बेचारा बच्चा सन्न रह गया। हैरान परेशान नन्हा बच्चा जोर जोर से वू वू कर रोने लगा। ठीक इसी समय न्यायाधीश बाओ कुंग अपने लाव लश्कर (सैनिकों तथा घोड़ों) के साथ उस सड़क  से गुजरे।
बाओ कुंग का रंग सांवला था। उनकी दाढ़ी भी काली थी। कुछ लोग उनको सांवले बाओ कुंग कहते थे तो कुछ बाओ कुंग काले कहते थे।वह बहुत होशियार व न्यायपिर्य अधिकारी थे। बाओ कुंग ने देखा कि छोटा बच्चा दहाड़ें मार कर रो रहा है और बहुत दुखी है। उन्होंने उस छोटे बच्चे से पूछा कि वह क्यों रो रहा है।बच्चा वू वू कर रोते हुए बोला मेरे ताबे के सिक्के नहीं दिख रहे हैं। मैंने वे सिक्के डबलरोटी की तली हुई डंडिया बेच कर कमाए थे। बाओ कुंग ने पूछा क्या तुम्हारे पैसे चोरी हो गए। बच्चा बोला  मालूम नहीं। मैं इस पत्थर का सहारा लेकर जैसे ही लेटा था । मुझे नींद आगई। नींद से जागा तो देखा टोकरी में पैसे नहीं हैं। ऐसा कह कर वह फिर वू वू कर रोने लगा।
बच्चे की बात सुनकर बाओ कुंग कुछ देर तक सोचते रहे फिर एकाएक बोले मैं जान गया हूं। मैं जान गया हूं। पक्का इसी पत्थर ने तुम्हारे पैसे चुराए हैं। मैं इस पत्थर से पूछताछ करूंगा।इसको आदेश दूंगा कि वह सिक्के तुम्हें लौटाए।पास खड़े तमासबीनों ने जब सुना कि बाओ कुंग पत्थर से पूछताछ करने वाले हैं तो चौंक गए।यह जानने के लिए कि बेजान पत्थर से कैसे पूछताछ की जा सकती है सभी पत्थर के चारों ओर खड़े होकर जोर जोर से आपस में बतियाने लगे। बाओ कुंग ने उस पत्थर से पूछा पत्थर पत्थर क्या तुमने छोटे बच्चे के तांबे के सिक्के चुराए हैं। पत्थर बोल तो नहीं सकता। इसलिए कोई उत्तर नहीं आया। बाओ कुंग ने फिर कहा पत्थर पत्थर तुमने छोटे बच्चे के तांबे के सिक्के चुराए हैं क्या। जल्दी बोलो जल्दी बोलो। पत्थर से अभी भी कोई आवाज नहीं आई। वह पूरी तरह चुप रहा। पत्थर बोल नहीं सकता है। पर बाओ कुंग का गुस्सा सातवें आसमान पर था। उसने धमकाया पत्थर तुम सच्ची बात नही बताओगे तो मैं तुम्हारा सिर तोड़ दूंगा। अधीनस्त कर्मचारियों ने जब बाओ कुंग  का यह आदेश सुना तो आव देखा न ताव लाठी लेकर पत्थर को पीटने लगे। वे पत्थर को पीटते भी और कहते भी कि जल्दी बोलो जल्दी बोलो।
पास खड़े तमाशबीन उनकी इस हास्यासप्रद हरकत का मजा लेरहे थे और बाओ कुंग का खूब मजाक उड़ा रहे थे। हंसते हुए वे कहने लगे कि पत्थर कैसे पैसे चोरी कर सकता है। पत्थर कैसे बोल सकता है। सबने कहा बाओ कुंग बहुत होशियार अफसर रहा है। यह पुरानी कहावत हो सकती है। आज तो ऐसा नहीं लगता। बाओ कुंग ने सुना तो बहुत गुस्सा होगए और बोले मैं पत्थर से पूछताछ कर रहा हूं। आप लोग क्यों मेरी आलोचना कर रहे हैं। थोड़ी देर सोच कर फिर चिल्लाए आप सबकी सजा है कि सभी एक एक पैसा जुर्माना दें। इसके बाद अपने अधीनस्त कर्मचारी को आदेश दिया कि वह एक खाली बर्तन लाए और उसमें पानी भर दें। वहां पर खड़े तमाशबीनों से कहा कि वे एक एक कर पानी भरे इस बर्तन में सिक्का डालें। अब तमाशबीनों के पास लाइन लगा कर एक एक करके सिक्का डालने के अलावा और कोई चारा नहीं था। फुथुंग फुथुंग पानी भरे बर्तन में एक एक कर सिक्के गिरने की आवाज आने लगी। भीड़ में से एक आदमी ने जैसे ही पानी में सिक्का फैंका बाओ कुंग ने अपने सहायक को आदेश दिया कि उसे पकड़ ले आए। बाओ कुंग ने इस आदमी से कहा तुम्ही चोर हो। तुम्ही ने छोटे बच्चे के पैसे चुराए हैं। सभी को बहुत आश्चर्य हुआ। यह कैसे संभव है। बाओ कुंग ने कहा तुम लोग खुद देखो केवल इसके फैंके सिक्के से पानी सतह में तेल की एक परत आगई है। इसका सिक्का अवश्य ही सोते समय बच्चे की टोकरी से चुराया गया सिक्का है। उस चोर के पास अब कोई उपाय नहीं बचा था। उसने चुपचाप चोरी के सारे सिक्के लाकर बच्चे को दे दिये। सभी ने बाओ कुंग की होशियारी की दाद दी।

(ये कहानी चीनी तथा अंग्रेजी भाषा में  http://chinesereadingpractice.com/category/beginner/childrens-stories/ में उपलब्ध है। मुझे लगा कि हिंदी भाषी भी इसे पसंद करेंगे। इसीलिए हिंदी में अनुवाद करने की कोशिश की।)